


अवरीद/जांजगीर :- आज पूरे देश में सुहागन महिलाएं श्रद्धा और भक्ति के साथ वट सावित्री व्रत रख रही हैं। यह व्रत विशेष रूप से पति की दीर्घायु, आरोग्यता और सौभाग्य की कामना के लिए रखा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है।
व्रत के दिन महिलाएं वटवृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और देवी सावित्री की कथा का पाठ करती हैं। यह कथा पौराणिक काल की है, जिसमें सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लाकर उन्हें जीवनदान दिया था। इस कथा में प्रेम, समर्पण और नारी शक्ति की अनोखी मिसाल देखने को मिलती है।
सुबह से ही महिलाएं पारंपरिक वस्त्रों में सज-धज कर पूजा की तैयारियों में जुट जाती हैं। वटवृक्ष की पूजा में रोली, मौली, जल, फूल, फल, धूप-दीप आदि का प्रयोग किया जाता है। महिलाएं पहले कलावा चढ़ाकर वटवृक्ष की परिक्रमा कर, उसके तनों में सूत लपेटती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा का श्रवण व पाठ करती हैं।
कैसे सावित्री अपने तापों बल से अपने पति की जान वापस लाकर उन्हें जीवनदान दिया
राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री का विवाह वनवासी सत्यवान से हुआ था। विवाह के बाद जब सावित्री को ज्ञात हुआ कि उसके पति की मृत्यु निकट है, तो उसने व्रत रखकर कठोर तपस्या की। जब यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए, तो सावित्री ने अपनी बुद्धिमत्ता और दृढ़ संकल्प से उन्हें प्रसन्न कर सत्यवान को जीवनदान दिलवाया।
इस व्रत को करने से महिलाएं न केवल अपने पति की लंबी उम्र की कामना पूरी करती हैं, बल्कि उन्हें आत्मबल और मन की शक्ति भी प्राप्त होती है। धार्मिक आस्था और नारी शक्ति का संगम है वट सावित्री व्रत, जो आज भी समाज में अपनी विशेष पहचान बनाए हुए है।
बांस के पंखे का महत्व पौराणिक कथा सावित्री और सत्यवान से जुड़ी हुई है, जिसके अनुसार जब सत्यवान जंगल में लकड़ियां काटते समय मूर्छित होकर गिर पड़े थे.तब सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे उन्हें लिटाया था और सत्यवान को शीतलता देने के लिए सावित्री ने बांस के पंखे से हवा दी थी. इसलिए सुहागिन महिलाएं बांस का पंखा पूजा में चढ़ाती हैं और पति को पंखा झलती हैं.